Wednesday, August 14, 2013

कैसे बताऊँ तुझे

दूर दूर रहती हूँ इसी कारण तुमसे क कहीं डूब न जाऊं इन आँखों के समन्दर में
मुझसे एसइ भूल न हो जाए जो रुसवा करे तुमको और और जीने न दे मुझको
लिख रही हूँ छोटी पाती पर प्रेम की दास्ताँ दिखता नहीं है मुझे साफ़ रास्ता
घना कोहरा छाया रहता है आँखों पर सुनती हूँ रोज तुम्हारी धड़कन रफ्ता रफ्ता
तेरी आखों में मैंने अपना चेहरा देखा है तेरी बातों में अपना अक्स देखा है
कई बार तेरे आँखों के आंसू में खुद को बहते हुए देखा है।
तेरी आँहो की पुकार इतनी दूर से भी सुनाई देती है
तेरे बिना बोले ही तेरी हर बात सुनाई देती है।
तुझे कहना है बहुत कुछ परकैसे कहूँ मै
अब तू ही बता ये प्यार का दर्द कैसे सहूँ  मैं

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