Friday, August 30, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग तीन

तीन दिन बाद मनोज घर आया।उसके आने के बाद गोविन्द का घर आना बंद हो गया। फुलवा अब ये जान चुकी थी की उसकी जिन्दगी में अब गोविन्द को पाने की कोई उम्मीद नहीं बची है।फुलवा एक मेहनती लड़की जल्द ही उसने घर का सब काम संभाल लिया।घर के लोग उससे बड़े खुश थे। बहुत बड़ा परिवार था उसका अब। पर उसकी जिन्दगी का खालीपन वो कोई नहीं भर सकता था। क्या एक औरत सिर्फ हवस की भूखी होती है ?उसके अंदर जस्बात नहीं होते?अगर नहीं होते तो क्या मनोज के साथ वो खुश नहीं रहती।एक कहावत है जाके पैर न फटी बेवाई सो क्या जाने पीर पराई।ये सही भी है ।जब तक अपने उपर बितती है तभी ही पता चलता है। वो जी तो रही थी पर वो खुश नहीं थी। एकांत के वो लम्हे उसे भाते नहीं थे। डरने लगी थी वो और हमेशा उन लम्हों से खुद को बचने की कोशिश में रहती थी। मन की कुंठा किसी से कह भी तो नहीं सकती थी।
वहां उसकी महुआ की शादी एक अधेड़ के साथ तय करदी उसकी माँ ने।उसके दो बच्चे थे। ज़मींदार था वो और महुआ वो तो सब कुछ बिना बोले ही सहती जा रही थी। गरीबी देखि थी उसने शायद इस्सी वजह से उसका मुंह बंद था। फुलवा  ने विराध भी भी किया पर महुआ ने उससे रोक दिया ।क्योंकि इसे पता था की उसकी शादी से उसके घर के लोगो का भी फायदा है। महुआ का विवाह हो गया और दो बच्चो की जिम्मेदारी संभाल ली उसने। पर शादी के बाद उसने कभी अपनी माँ और बहनों को काम पर जाने की नौबत नहीं आने दी। महुआ पर दो लडको की जिम्मेदारी थी दोनों उम्र में ग्यारह और तेरह साल के थे पर अमीर बाप के बिगडैल बच्चे थे ।महुआ को सब पता था कि वो सारा दिन यहाँ वहां घुमने के अलावा दुसरो को अरेशान करने के अलावा कुछ नहीं करते थे पर वो उनकी सौतेली माँ थी कहती भी तो क्या?उसने धीरे धीरे बच्चो से अपनापन बढाया। एक दिन वो घर में अकेली थी छोटा बेटा  वहां खेल रहा था अच्चानक उसे चोट लगी उसने भागकर बच्चे को गोद में उठा लिया। और मरहम पट्टी की। छोटा उससे घुलमिल गया ।एक दिन छोटे ने बताया की उनकी माँ मरी नहीं थी उसे मार दिया गया था। महुआ ये सुन कर डर गयी ।वो सोचने लगी की आखिर क्यों उसके पति ने अपनी पत्नी को मार डाला।घर के नौकरों से भी पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी। पर वो समझ चुकी थी की कुछ तो जरुर है और वो पता लगा के रहेगी।
उधर फुलवा माँ बन चुकी थी ।उसने एक सुन्दर बच्चे को जनम दिया था ।बच्चे के आने से उसकी जिन्दगी का खालीपन भरने लगा था। मनोज भी खुश था।अनु और नीरा की भी जिन्दगी चल रही थी।अनु शादी नहीं करना चाहती थी ।वो शहर जाने के सपने देखा करती थी।उसने अपने ख्वाबो की दुनिया बसा ली थी और उसी में जीती चाहती थी।एक दिन अपने ख्वाबों को पूरा करने की चाह में वो देर रात घर से निकल गयी। सुबह उसने ट्रेन पकड़ी और जा पहुंची एक बड़े शहर में। मुंबई रेलवे स्टेशन पर उतरी तो उसने सोचा भी नहीं था उसकी जिन्दगी में अगला मोड़ कितनी जल्दी आने को है।वो स्टेशन से बाहर आई और शहर की चकाचौंध में खो गयी। चलते चलते वो थक गयी ।भूख भी लगी थी। उसने दस रूपए निकाले और वडा पाव्र लेकर खाने लगी। वो चली जा रही थी कि पीछे से कार से टकरा गयी और फिर उसे होश न रहा। आख खुली तो खुद को एक आलिशान घर में पाया।

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