Saturday, April 12, 2014

कैसी बेरुखी

उन्हें तो न तब फर्क पड़ता था न अब पड़ता है
मोहब्बत और नफरत दोनों बराबर है उनके लिए
बेजार तो हम हुए है ज़र्रा ज़र्रा बिखरे है
मोहब्बत में भी और नफरत में भी
सुर्ख आँखों में आंसू लिए दर दर घूमती हूँ
कोई आके तो देखे मैं किस कदर तुझे ढूँढती हूँ
प्यार में मेरी यादें भी नीलाम हो गयी हैं
और मैं लोगों से अब भी तेरा पता पूछती हूँ

मुझे एक ख़ुशी का टुकड़ा उधार दे दो
थोड़ी देर के लिए यार का दीदार दे दो
सारी उम्र इसके लिए चाहे सजा दे दो।
और अगर कम लगे तो फांसी दे दो
राखी

1 comment:

  1. Awesome very nice.....

    तेरी नाराजगी वाजिब है दोस्त।
    मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल।।

    AB YE DILL UNKA TALBGAR NAHI
    MAUT PE TO HAI UNPE AITBAR NAHI
    ZINDGI YU BAN GYI MOHABBAT ME UNKE
    DUR TAK VEERANGI HAI AB BAHAR NAHI
    GAM UNKA AABAD RAHEGA IS DILL ME
    YE OUR BAT HAI KI ANKHE ASK BAAR NAHI
    BADAL BHI LETA TUTE DILL KO MAI
    MAGAR IS JAHA ME DILL KA KOI BAZAR NAHI
    KEHATA HU AAJ YE MAI TUMSE
    UTHA KE KHANZAR ZIGAR KE PAAR KAR DO
    MARNA CHAHTA HU MAI BAAR BAAR NAHI
    VIVEK PANDEY
    FACEBOOK ID vivekpandit87@yahoo.com

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