Monday, May 19, 2014

मेरी किताब

आँखों में सपने  सुनहरे सजाने लगी हु मैं
क्यों आजकल अकेले में मुस्कुराने लगी हु मैं
मेरा हर ख्वाब तुझसे जुड़ गया है मेरी किताब
तुझे अपने दिल के और पास लाने लगी हु  मैं

जब भी कलम चलती है मेरी तुझ पे लिखने
स्याही से ख्वाब उकेरने लगी हु मैं
लिखे हुए शब्दों को फिर से सहेजकर
माला की तरह पिरोने लगी हूँ मैं

तू एक बच्चे की तरह हो गयी है मेरे
जिस वक़्त बेवक्त गोद में उठाये फिरती हूँ मैं
और जब कभी मन करता है खेलने का
कलम से पन्नो पर खेलने लगी हूँ मैं

मुझे तेरी आदत सी हो गयी है ऐसी
एक प्रेयसी की तरह तुझे प्रेम करने लगी हु मैं
और तुझे अपने पास न पाकर जाने क्यू
अधीर और चिंतित सी होने लगी हूँ मैं

बस अब जिन्दगी कटेगी तेरे साथ मेरी
और उस जिन्दगी को अभी से सोचने लगी हूँ मैं
अब तो तुझसे जुदाई मुश्किल है तुझसे
तेरे साथ हर लम्हा जीने लगी हूँ मैं


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