आँखों में सपने सुनहरे सजाने लगी हु मैं
क्यों आजकल अकेले में मुस्कुराने लगी हु मैं
मेरा हर ख्वाब तुझसे जुड़ गया है मेरी किताब
तुझे अपने दिल के और पास लाने लगी हु मैं
जब भी कलम चलती है मेरी तुझ पे लिखने
स्याही से ख्वाब उकेरने लगी हु मैं
लिखे हुए शब्दों को फिर से सहेजकर
माला की तरह पिरोने लगी हूँ मैं
तू एक बच्चे की तरह हो गयी है मेरे
जिस वक़्त बेवक्त गोद में उठाये फिरती हूँ मैं
और जब कभी मन करता है खेलने का
कलम से पन्नो पर खेलने लगी हूँ मैं
मुझे तेरी आदत सी हो गयी है ऐसी
एक प्रेयसी की तरह तुझे प्रेम करने लगी हु मैं
और तुझे अपने पास न पाकर जाने क्यू
अधीर और चिंतित सी होने लगी हूँ मैं
बस अब जिन्दगी कटेगी तेरे साथ मेरी
और उस जिन्दगी को अभी से सोचने लगी हूँ मैं
अब तो तुझसे जुदाई मुश्किल है तुझसे
तेरे साथ हर लम्हा जीने लगी हूँ मैं
खूबसूरत रचना
ReplyDeletebahut sundar
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