Friday, May 9, 2014

मेरी शादी

घर में मेरी शादी की बाते होने लगी थी
और मैं भी नए सपने सजोने लगी थी
मुझे देखने लड़के वाले आ रहे थे
सब अपने अपने कयास लगा रहे थे
सबकी बाते सुनती थी और चुप थी मैं
सोचती रहती थी की क्या करुँगी मैं
मुझको सब पाठ पड़ा रहे थे लगा ऐसे
जैसे वो सामान खरीदने आ रहे थे
वो दिन जब लड़का देखने आया
मुझे डर ने बहुत दिर तक सताया
पर फिर हिम्मत आई न जाने कहाँ से
मैं भी चल दी चुप चाप वहां से
सामने जाके बैठ गयो उनके मैं भी
लड़के ने कुछ भी न पूछा पर मैं बोली
मैंने ही अपनी जबान पहले खोली
कुछ बातों के बाद मैं अंदर चली गयी
डर के मारे मेरी दिल की धड़कन बढ़ गयी
पता चला की शादी की हाँ हो गयी
कल तक जो मैं थी आज वो दुल्हन बन गयी
मेरे घर को सजाया जा रहा था
सामान शादी का लाया जा रहा था
मन भी नयी दुनिया को सोचता था
पिया के घर का सपना हरसू देखता था
हल्दी जब मुझको लगायी जा रही थी
होंटो पे मुस्कान आई जा रही थी
भाभी कर रही थी मुझसे ठिठोली
और मैं हो रही थी अब यहाँ अकेली
सुर्ख जोड़ा मुझको पहनाया जा रहा था
सोलह श्रृंगार भी मेरा किया जा रहा था
आँखों में मेरी एक चमक सी आ गयी थी
चुनरी मेरी अब भी लहरा रही थी
दुल्हन जब मुझको बनाया जा रहा था
सुरूर सा दिल पे मेरे छाया जा रहा था
आई जब वरमाला लेके मैं दर पे अपने
तब पिया को देख न पायी
लाज लगी मुजको कुछ इस तरह की
अंखियों को अपनी उठा ही न पाई
फेरो पर पिया संग बैठी घबराई हुई
थोडा दरी थोडा सकुचाई हुई मैं
कन्यादान मेरा किया जा रहा था
बाबा का घर अब छुटा जा रहा था
साथ फेरे लिए मैंने पिया संग अपने
मन में सजा के कुछ कोमल सपने
मुझे डोली में बैठाया जा रहा था
घर से विदा अब किया जा रहा था
इस देहरी पे मेने अपना बच्पन बिताया
और अब पिया और उसके घर को अपनाया
छोड़ चली मैं अपने बाबा के घर को
अपना लिया अपने सजन सांवरे को।


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