Wednesday, August 20, 2014

बचपन के दिन

वो बचपन के दिन भी क्या कमाल के थे
उन दिनों हम भी बेमिसाल से थे
गलिओं में खेला करते थे
छतों पर कूदा करते थे
अनमनी सी सूरत बना हम
स्कूल को जाया करते थे
संग दोस्तोके अपने हम धूम मचाया करते थे
खेले हमने खेल बहुत लूडो कैरुम गिल्ली डंडे
लंगड़ी टांग और कब्बडी खो खो में खूब लगाये हथकंडे
दादी और नानी जब रातों को किस्से सुनाया करती थी
वो चुपचाप हमको नींद के आगोश में ले जाया करती थी
अब बस यादें हों उस बचपन की
जहाँ कागज़ की क्षति और हवैजहाज़ उड़ाते थे
पतंग को ले छतों पर हम पेंच लड़ाया करते थे
थक कर हम फिर कहीं भी सो जाते थे
पर सुबह हम खुद को बिस्टेर पे ही पाते थे
काश की वो बचपन का मौसम फिर लौट के आ जाए
और हमको वापस उन पलों की सैर करा लाये
राखी शर्मा

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