वो बचपन के दिन भी क्या कमाल के थे
उन दिनों हम भी बेमिसाल से थे
गलिओं में खेला करते थे
छतों पर कूदा करते थे
अनमनी सी सूरत बना हम
स्कूल को जाया करते थे
संग दोस्तोके अपने हम धूम मचाया करते थे
खेले हमने खेल बहुत लूडो कैरुम गिल्ली डंडे
लंगड़ी टांग और कब्बडी खो खो में खूब लगाये हथकंडे
दादी और नानी जब रातों को किस्से सुनाया करती थी
वो चुपचाप हमको नींद के आगोश में ले जाया करती थी
अब बस यादें हों उस बचपन की
जहाँ कागज़ की क्षति और हवैजहाज़ उड़ाते थे
पतंग को ले छतों पर हम पेंच लड़ाया करते थे
थक कर हम फिर कहीं भी सो जाते थे
पर सुबह हम खुद को बिस्टेर पे ही पाते थे
काश की वो बचपन का मौसम फिर लौट के आ जाए
और हमको वापस उन पलों की सैर करा लाये
राखी शर्मा
Wednesday, August 20, 2014
बचपन के दिन
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