Wednesday, August 27, 2014

जब भी मैं अकेली होती हूँ

जब भी मैं अकेली होती हूँ
तो तुम्हारी याद से खुद को घेर लेती हूँ
साँसों मेंएक तूफ़ान सा उठता है
मैं खुद को आंसुओं से भिगो लेती हूँ

जो पल मैंने तुम्हारे साथ गुज़ारे
उन पलों की माला पिरोती हूँ
और फिर उस माला से अपने रूप का श्रिंगार करने लग जाती हूँ

कभी कभी तेरा ख़याल इस
कदर हावी हो जाता है मुझपे
लगता है जैसे तू सामने हो मेरे
और तुझे बस देखे चली जाती हूँ

मेरा ये अकेलापन ही तो है
जो तुझसे मिलने का एक ज़रिया है
वरना इस तेज चलती जिंदगी में
किसको किसकी परवाह है

वो लम्हे मुझे अपनी जान से भी प्यारे है
क्युकी उनमे तेरी यादों की महक है
उनमे तेरे पास होने का अहसास है
और तू ही तो है आज भी दिल के पास है।
राखी शर्मा

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