Sunday, August 31, 2014

मैं और तुम

मैं और तुम जब साथ थे तो थे
हमारा बिछोह तो कब का हो चूका
और मैं और तुम अब अलग हैं
पर क्या भूल  गए तुम
हमारा साथ बिताया समय
वो एक  दुसरे से जुड़ाव
वो हमारा एक दुरे के लिए स्नेह
वो साथ खाना घूमना बातें करना
वो प्यार के सुनहरे पल
बिछड़ तो गए हैं हम पर क्या
दिल से जुदा हो पाए हम तुम

1 comment:

  1. राखी जी!
    आपकी कविताओं में जीवन स्पंदित होता है.कहीं उछाह, कहीं प्रवाह तो कहीं नियति का प्रभाव,कहीं संवेदना कहीं सद्भाव.है. मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
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