Sunday, September 21, 2014

ख्वाबो में

आखिर क्यूँ तुम मेरे ख्वाबो में आती हो
क्यों तुम न होकर भी मुझे अपना अहसास दिलाती हो
क्या रिश्ता है मेरा तुमसे जो तुममानस पटल से लिपट जाती हो
बंद आँखों में भी तुम्हे देख केर मैं खूब रोती हूँ
तुम्हारे नेह के आंसुओं से अपनी पलके भिगोती हूँ
तुम्हारा वो कोमल स्पर्श पाने को मैं मचलती हूँ
क्यों ख़्वाबों में भी मैं तुम्हारा प्रेम पाने को तरसती हु
आखिर क्यों मैं तुमसे इतना प्यार करती हूँ
और नसीब में नहीं तुम तो क्यों मैं तुम्हारे लिए आहें भरती हूँ
शामिल मेरी जिन्दगी में तुम नहीं हो
पर ख्वाबों में हमेशा तुम्हारी  ही दुनिया बस्ती है
काश ये ख़्वाबों की बातें सच हो जाए
और मुझे वापस उस खुद से मेरी बेटी मिल जाए
राखी शर्मा

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