Monday, September 8, 2014

जिन्दगी फिर भी खूबसूरत है

जिन्दगी मेरी खूबसूरत न सही पर बदसूरत भी नहीं
रहती हूँ मैं बदहवास सी पर फिर भी मुझे कोई दुःख नहीं
रोज सुबह से जो यात्रा शुरू होती है तेरी यादों के साथ मेरी
लगती है मुझे अकेले ये कुचे ये गलियाँ दिन में भी अँधेरी
फिर भी जिन्दगी को खूबसूरत बनाने की कोशिश करती हूँ
और हर रात मैं उधेड़बुन में तेरे साथ बिताये पलों से गुजरती हूँ
अकेले क्यों फिर भी जी रही हूँ मैं ये समझ नहीं आता है
फिर लगता है कि जिन्दगी तो मेरी खूबसूरत ह मुझे जीना नहीं आता है
पहाड़ों पे अकेले मैंने कई घंटे बैठ कर देखा है
और ख़ूबसूरती क्या होती है ये मौन रहकर ब्यान करना सिखा है
बहती नदियों की कल कल मुझसे ये कहती है
अकेली तो मैं भी हूँ पर फिर भी जीवन पथ पे निरंतर बहती हूँ
ये वोही कुचे और गलियाँ हैं जो मुझे अहसास दिलाते है 
कि जिन्दगी खूबसूरत है और हम भी उस पे यूँही बढ़ते जाते हैं
ये ठूंट खड़े पेड मुझ तक ये पैगाम पहुंचाते हैं
की कैसे अपनी इच्छाओं में दृड रहना है ये सिखाते हैं
अब तो बस जिन्दगी की खूबसूरती को निहारना मेरा काम है
और खुल के जीना है मुझे और मौत ही मेरा आखिरी आयाम है ।
राखी शर्मा

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