Tuesday, September 9, 2014

मेरा मन एक बच्चा

मेरे अंदर का बच्चा काफी कुछ सह जाता है
सहमा सहमा डरा डरा जुबान से कुछ नही कह पाता है
कहीं उदास है टूटे सपनो से तो कही  आशा अधूरी है
जो उसको बेबस करती वो आज भी उसकी मज़बूरी है
चाहता तो है वो भी उड़ना अरमानो के पंख लगा के
करता रहता है बार बार कोशिश अपने पंख फडफडा के
गुमसुम  सा मूक सा रहता है वो मुझसे बस ये कहता है
क्यों मुझे आज़ादी नहीं क्यों ये जुल्म ज़माने के सहता है
बच्चा है आखिर जिद पकड़ के बैठ ही जाता है
और उसे समझाने को फिर मेरा दिमाग जोर लगाता है
राखी शर्मा

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