कैसा जिहाद कैसे ज़िहादी इन्होंने तो इंसानियत की सीमा लांघ दी
आज क्यों है पाकिस्तान इतना ग़मगीन इन्होंने ही तो अपने घर इन्हें पनाह दी
हमेशा इसने हौसला ही बढ़ाया है इन आतंकियों का
आज इन पर पड़ी तो इन्होंने अपने आँखे गीली कर दी
भूल गए क्या 26/11 हम कैसे भूलते इनकी जो करतूत थी
संसद पे जो हमला कराया वो भी तो इन्ही की एक भूल थी
वो हम ही हिंदुस्तानी हैं जिनको गम है इनके मासूम के मरने का
नहीं तो इनकी इंसानियत तो चादर ओढ़ कर कहीं दूर जाकर सो रही
अब आँख न खुली इनकी तो लानत है इनपर और दो पनाह इन हैवानो को
तुम्हे तुम्हारे ही देश में मार डालेंगे ये आतंकी तोड़ डालेंगे तुम्हारे मकानों को
अब भी समय है सभल जाओ अब तो इनका साथ न दो इन्हें मिलकर मार गिराओ
अपने पैर की बेवाइ फटी तो हुआ न दर्द हम भी ये दर्द हरसू झेलते हैं
पल अपनों को खोने का दंश क्या होता है हम भी इसी को सोचते हैं
दुखद है ये जी उ होने मासूमों को मार डाला उन्होंने अपनी बुज़दिली का सबूत दे डाला।
राखी शर्मा
Wednesday, December 17, 2014
कैसी हैवानियत
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