एक बात है जो कहनी है मुझे तुझसे
की तेरी ही तरबियत का असर है ये
जो मैं कुछ लिखना सीख गयी हूँ
मुझे न तो शब्दों का पता है न उनकी समझ
पर उनको कविता की माला में पिरोना सीख गयी हूँ
कुछ तो तेरी रहमत है मुझ पर कुछ मेरा हुनर है
मैं अहसासों की लडिया बना सीख गयी हूँ
मैं एक अदना सी औरत कैसे किस तरह ये
शब्दों का ये रंगीन जादू करना सीख गयी हूँ
तुझे अहसास नहीं है पर ज़र्रा हूँ मैं इस माटी
और ज़र्रा ज़र्रा जोड़ जोड़ के महल बनाना जान गयी हूँ
करती हूँ बेबाक बातें औरअनकही बातें जाने अनजाने
उन बातों का मतलब क्या है अब मैं पहचान गयी हूँ
मैं हल्का हो जाता मेरा जब तुझसे बात करूँ मैं
तूने ही मुझसे कहा था कहना तेरा मान गयी हूँ
बस ऐसे ही मुझसे तू यूँही जुडी रहना अब
स्नेह लुटाना माँ यूँही तेरी बाहों में आ जो गयी हूँ ।
राखी शर्मा
Sunday, December 28, 2014
अब मैं लिखना सीख गयी हु
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