Wednesday, January 14, 2015

रूह की तड़प

स्याह रातों में मेरी रूह निकल जाती है
मेरे जिस्म से
तेरी तलाश में और पहुँच जाती है तेरे पास
तुझे बैठ कर निहारती है वो रोज़ क्योंकि
जब ऐसा होता है न मेरा जिस्म महकता है
शायद ये मुझे अहसास कराता है कि
तेरी क्या जगह है मेरी बेमानी सी जिंदगी में
सुबह होते ही लौट आती है वापस मेरी रूह
और फिर से उसे इंतज़ार रहता है शाम का
क्योंकि जो सुकून तेरे दीदार मिलता है न उसे
वो शायद कहीं भी महसूस नहीं करती वो भी
मेरी ही तरह तेरे दीदार को तरसती है ।
राखी शर्मा

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