Thursday, April 30, 2015

मेरा बयान

इश्क हो गया तो उम्मीद खो गयी
तेरे प्यार की मैं मुरीद हो गयी
न इसकी कोई मंज़िल न कोई ठिकाना
मेरी हालत कुछ गंभीर हो गयी
डूबी हूँ जबसे तेरी आँखो के समंदर में
मैं तो जैसे तेरी हीर हो गयी
बंद पिंजरे में पक्षी की तरह तड़पती हूँ
ऐसी मेरी तासीर हो गयी
दीन दुनिया से बेखबर हो तुझमे खोयी हूँ
मेरी तो रातें रंगीन हो गयी
मसला ऐ मोहब्बत इससे बढ़कर क्या होगा
कि मैं तेरे इश्क़ में फ़क़ीर हो गयी
न मेरा कोई मज़हब रहा न ही कोई ज़ात मौला
मैं शायद पाकीज़ा पीर हो गयी
तवज्जो दे ऐ मेरे हमनवा अब तो तू मुझको
के मैं ज़र्रों में ही कहीं विलीन हो गयी ।
राखी शर्मा

Sunday, April 26, 2015

बता दो न प्रिये


आजकल तुम इतना विरह क्यों लिखती हो प्रिये
तुम मुझको बतला दो आज क्यों होती हो गंभीर प्रिये
चंचल चितवन मेरी प्रिये जाने कहाँ अब खो गयी है
वो तो सबसे कटने लगी और एकाकी हो गयी गई है
रहती थी जो खिली खिली अब मुरझा सी गयी है वो
आखिर ऐसा क्या है जो मुझसे अनजानी सी हुई है वो
कल कल नदियों सी उसकी हंसी अब कहीं खो गयी है
हर पल मुझको अपनी लगती पर अब बेगानी हो गयी है
बता दो न ये राज़ और  खोलो अपने मन के द्वार प्रिये
तुम एक बार मुझको अपना मान कुछ तो बोलो प्राणप्रिये
कुम्हला सी गयी है सूरत तुम्हारी जो फूलों सी खिलती थी
मुझसे मिलने तो तुम जाने क्या जतन करने लगती थी
अब तो सामने भी आ जाऊं तो तुम मुस्काती नहीं हो
अपनी आँखों की पलके मेरी पलकों से मिलाती नही हो
क्यों आखिर तुम इतना आजकल संजीदा हो गयी हो
क्यों मेरे सामने होते हुए भी और कहीं खो गयी हो
जिस चहरे पे हमेशा लालिमा झलकी वो क्यों हुआ पीला
शबनमी गुलाबी होंटों का रंग भी अब तो हो गया नीला
क्या मैं हूँ इन सब का जिम्मेदार और गुनाहगार प्रिये
उस रब ही खातिर ही छोड़ दो मुख से शब्दबाण प्रिये ।
राखी शर्मा

Monday, April 20, 2015

एक ख़्याल

आज कुछ अलग सा ख़्याल ज़हन में आया है
इश्क़ का एक सवाल मन में घर कर आया है
क्यों आखिर बेज़ार होकर इश्क़ में आदमी
शराब को तन्हाईओं का हमसफ़र बनाता है
शराब में डूबकर खुद को अपने ख्यालों को एक
शख्स के लिए इतना कम ज़ोर बनाता है
क्या औरत भी इसी तरह शराब नही पि सकती
क्या इस मय में खोकर वो सब भुला नही सकती
पर औरत शायद इतनी कमज़ोर नही जो टूट जाए
दिल टूट जाए तो क्या मनोबल उसका टूट न पाये
शराब में खोकर आदमी जो खुद को भुला देता है
दिल टूट जाये तो जिंदगी भी कभी कभी मिटा देता है
पर औरत फिर उठ जाती है खुद को जोड़ ने के लिए
फिर से शायद एक बार टूट कर बिखर जाने के लिए ।
अधूरी वो भी होती है तन्हाई में अश्कों से दामन भिगोती है
पर जिंदगी के सफर को वो यूँही बस यूँही जीती है ।
राखी

Saturday, April 18, 2015

तुझसे इश्क़ क्यों न हो

लरज़ जाती हूँ मैं आज भी जब वो मुझे चुपके से देखता है ।
उसकी आँखों की चिलमन की कसम कयामत होती है जब वो आँखे खोलता है ।
उसके कांपते होठ जब मुझे पुकारते है बेबस होकर फिर रुक जाते हैं ।
ज़लज़ला आ जाता है मेरे जिस्म में जब वो अपनी बाहों में घेरता है ।
उसकी वफायें देखो मेरी जानिब वो मुझसे भी कहीं ज्यादा सोचता है
कैसे न हो उस से इश्क़ मुझे जो अपनी जिंदगी को मेरी ख्वाइशों में तोलता है ।
उसपे कुर्बान मेरी सारी जिंदगी है जो खुद से ज्यादा मुझे तवज्जो देता है ।
उसकी हर एक सांस मेरे लिए है वो अपनी सारी क़ायनात मुझमे देखता है।
राखी शर्मा

Monday, April 13, 2015

ये कैसी जिन्दगी

हलचल सी मची है कोई तूफ़ान सा उठा है
जिंदगी ने आज मुझे फिर से छला है
मौत को इतने पास पाकर बस यही सोचा
ऐ जिंदगी तेरे रास्ते भी बस कमाल है
खुद को ढूँढने निकली जब मैं इस जहाँ में
तो सोचा मैंने की सफ़र बेमिसाल है
कोई नहीं है यहां किसी का ये तो बस
दुनिया में उस रब का माया जाल है
सब हराम का है यहाँ कौन कहता है
सब यहां जो मौजूद वो हलाल है
मेरी जानिब कोई नहीं सोचता मेरे रब
तू ही है बस जिसे मेरा ख़याल है ।
राखी शर्मा

Friday, April 10, 2015

मेरा निश्चय


मन की नदी में चल रही है ख्वाइशों की कश्ती
आते हैं भंवर सुख दुःख के कश्ती को भटकाने
रिश्तों के तूफ़ान भी आते हैं मुझे विचलित करने
पर क्या करूँ भटकती नहीं हु फिर भी मैं
मुझे मेरे लक्ष्य का पता है और ये भी कि मुझे
ये छोटे मोटे तूफ़ान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते
और मैं निरंतर बढ़ती ही जा रही हूँ शिखर की ओर
मुझे नहीं पता की मेरी मंजिल मुझे मिलेगा या नहीं
पर मैं दृढ़ निश्चय करके बैठी हूँ की कोई मुझे
न तो हिला सकता है न ही गिरा सकता है ।
खुद को इतना मजबूत बना डाला है कि किसी
के बुरा भला कहने का मुझ पे कोई असर नहीं
मेरा काम तो ये है की निरंतर प्रगति के पथ पर
आगे ही आगे बढ़ती ही चली ही जाऊँ ।
राखी शर्मा

Saturday, April 4, 2015

गली का कुत्ता

गली का आवारा लगने वाला कुत्ता
रोज़ आता है मेरे गेट पर शाम को
अब तो उसकी आदत में शुमार हो गया है
रोज़ आना मुझे बुलाना रोटी लेना और चले जाना
और फिर वापस आना और मुझे कृतज्ञता से देखना
मेरे चारों तरफ चक्कर लगाना और अपनी ख़ुशी जताना
बड़ा ही विस्मय से भरा दृश्य होता है मेरे लिए
जब वो अपना आभार प्रकट करता है
फिर वो आवारा कैसे हुआ उस से ज्यादा
शिष्ट और कृतज्ञ तो इंसान भी नहीं है
फिर भी दिल में जगह नहीं बहुत लोगो
इन सड़क पर घूमने वाले पशुओं के लिये
क्या ये भी हमारे समाज का अभिन्न अंग नहीं
जिस वो नहीं आता मैं बैचैन सी उसकी रह देखती हूँ
शायद मैं भी जुड़ गयी हूँ उस बेजुबान से जो मुझे
बिना बोले ही सब समझ देता है की क्या चाहता है वो
क्या ये उसकी सभ्यता का परिचायक नहीं की वो घर
के बाहर ही इंतज़ार करता है एक रोटी के लिए
फिर वो आवारा कैसे हुआ ...............
राखी शर्मा

Friday, April 3, 2015

खामोश मोहब्बत

न उसने इकरार किया न मैंने इज़हार किया
न उसने कोई वादा किया न ही मैंने कसम खायी
पर फिर भी एक खामोश सा प्यार है हम दोनों में
न मेरे बिना वो रह सकता है न उसके बिना मैं
और ये खामोश प्यार हमारे जीने की वजह है
उसकी नजरे जाने कैसे मेरी नजरों की भाषा को पढ़ लेती है
और मुझे अपने वश में कर लेती हैं जैसे जादू किया हो
और मैं देखती ही रह जाती हूँ उसे बरबस
अपनी आखो में मासूमियत लेकर मेरा कोई ज़ोर नहीं चलता ।
मुझे इतना बेबस कर देता है की उसके कलावा न कुछ सुनाई देता है न दिखाई
एक वो रहता है नजर के सामने भी और आँखों के दरमियान भी
राखी शर्मा