Friday, April 3, 2015

खामोश मोहब्बत

न उसने इकरार किया न मैंने इज़हार किया
न उसने कोई वादा किया न ही मैंने कसम खायी
पर फिर भी एक खामोश सा प्यार है हम दोनों में
न मेरे बिना वो रह सकता है न उसके बिना मैं
और ये खामोश प्यार हमारे जीने की वजह है
उसकी नजरे जाने कैसे मेरी नजरों की भाषा को पढ़ लेती है
और मुझे अपने वश में कर लेती हैं जैसे जादू किया हो
और मैं देखती ही रह जाती हूँ उसे बरबस
अपनी आखो में मासूमियत लेकर मेरा कोई ज़ोर नहीं चलता ।
मुझे इतना बेबस कर देता है की उसके कलावा न कुछ सुनाई देता है न दिखाई
एक वो रहता है नजर के सामने भी और आँखों के दरमियान भी
राखी शर्मा

No comments:

Post a Comment