Monday, June 1, 2015

एक सच

आज मैं ऑफिस देर से आई बॉस ने मुझे खरी खरी सुनाई
होंटों से तो मैं कुछ बोली नही पर अश्रुधारा अपनी रोक न पायी
ये देख बॉस मेरे घबरा गए और डर के मारे सकपका गए
मैं तो रो ही रही थी ये देख के उन्हें पसीने और आ गए
लेट तो मैं कई दफा होती थी पर ऐसा कभी मंजर नही होता था
उनके सामने इस तरह मेरा रवैया कभी नहीं होता था
आखिर मैंने अपनी सिली हुई जुबां खोली
दबी हुई आवाज़ में मैं उनसे रुंधे गले से बोली
ममता आज शर्मसार कचरे के डिब्बे में फैक दी गयी है
आज फिर औरत की ममता शर्मसार हो गयी है
निकली तो थी घर से मैं समय पर रास्ते में भीड़ ने मुझे रोका
दिल को जो कचोट दे ऐसा एक मंजर मैंने देखा
एक नवज़ात बच्ची कचरे के डिब्बे में पड़ी थी
उसकी किल्कारिकारियां सबने ही सुनी थी
पर किसी में हिम्मत नही थी जो उसे अपनाये
उस नन्ही जान को लावारिस देख के उदार हो जाये
आखिर मैं एक माँ थी तो उससे कैसे ऐसे छोड़ देती
कैसे उससे तक़दीर के भरोसे मारने को छोड़ देती
मेरी अंदर की औरत ने मुझे आगे बढ़ने न दिया
उस अनजान से बंधी अनदेखी डोर ने मुझे जाने न दिया
उठा लिया गोद में उसे दुलार जो किया शायद समझ
गयी वो भी की किसी ने उसे प्यार तो किया
उसे मैंने कानूनी तौर पर गोद लेने की ठानी
पर मेरे आगे थी मेरे परिवार और नौकरी की परेशानी
अचानक मुझे एक संस्था की याद आई जो
बेसहारा और मजलूम बच्चीयों की करती निगरानी
उसका खर्च वहन करने की मैंने तो ज़िम्मेदारी उठाई
उस बच्ची को फिर वहां भर्ती करा कर आई
मेरी भी मजबूरियां है जो उसे घर नहीं ला पायी
जो मुझसे होगा उसके लिए  लड़ूंगी किस्मत से लड़ाई
इसिलिये मैं लेट हुई अपने ऑफिस  से आज
सर आप किसे देंगे मेरे लेट होने का इलज़ाम
मेरे अंदर की औरत को या उसकी निष्ठुर माँ को ??????????????
राखी शर्मा

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