काश के किस्मत लिखना मेरे बस में होता तो
मैं अपने हाथ से तेरे नाम की लकीर मिटा देती
काश के समझ पता तू मेरे जज़्बातों को कभी
कसम से मैं तुझ पे अपनी जान तक लूटा देती
अगर गुनाह सिर्फ मेरा होता ये मोहब्बत तो
बस मैं अपने आप को ही इसकी सजा देती
खुद को तनहा छोड़ना मेरे बस में नही अब
मैं कैसे तेरी मोहब्बत को दिल से भुला देती
तुझे शौक है तो बन जा बेवफा ओ मेरे हबीब
मैं कैसे खुद को दुनिया से बेवफा कहलवा देती
नुमाइश नहीं होती रूहानी प्यार की हमदम
फिर कैसे ये राज़ मैं दुनिया को बता देती
जो नम कर गया है दर्द से तू मेरी आँखे
कैसे इसके आंसुओं को मैं इन आँखों में छुपा लेती
फितरत है मेरी किस्मत की शायद दगा देना मुझे
पर मैं कैसे अपना दिल तोड़ के खुद को हँसा लेती
गम न कर तुझसे बहुत दूर चली जाउंगी मैं ये हमनवा
जाना ही था दूर तुझसे तो क्यों तुझे अपना पता देती
खुदा हाफिज है मेरी जान तुझे तू रहे अमन चैन से
मैं कैसे तेरे पास रह्कर अपने ज़ख्मो पे नमक लगा लेती ।
राखी शर्मा
Friday, June 12, 2015
काश
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