परिभाषा ही बदल गयी है इश्क़ की मेरे ज़हन में जबसे तुझे इश्क़ किया है मैंने
इस कदर बेजार होकर बिखरी हूँ मैं की खुद को तार तार किया है मैंने
न जाने कौन सी दुश्मनी थी तेरी मुझे जो इस कदर ठुकरा के चल दिए
रूह और मन का श्रृंगार भी किया है अहसासों से तेरी खातिर मैंने
खुद को समझा लिया है मैंने बस ये आँखे नहीं मानती है मेरी
तेरे सपने जिन्होंने देखे थे उनको आंसुओं की माला पिरोते देखा है मैंने
दिल रह रह के सोचता है तेरी जानिब पूछता है तुझ बिन क्यों जीना स्वीकार किया है मैंने
पर मेरे पास सवालों का कोई जवाब नही अब तो बस चुपी को ही अंगीकार किया है मैंने
मेरी उलझन कोई न जाने न कोई समझे मेरी पीर अपने ज़ख्मो के लहू को खुद ही पिया है मैंने
छले मेरी रूह पे जो है नमक उनपे छिड़क के उस दुःख को भी सहन किया है मैंने
अपनी जिंदगी से तुझे निकाल दिया और जहर ये कड़वा भी पिया है मैंने
न मैं जिन्दा न मैं मुर्दा अपने इस हाल का जिम्मेदार तुझे ही बना दिया है मैंने
दुआ और बदुआ कुछ नही निकलती है तेरे लिए दिल का ये बोझ हटा दिया है मैंने
राखी शर्मा
Saturday, July 18, 2015
बदलाव तुझसे इश्क़ के बाद
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ReplyDeleteThanx tushar
ReplyDeleteThanx tushar
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